जब सोचती हूँ , कौन हूँ मैं
तो लगता है , सारा संसार हूँ मैं
कभी लगता है अधूरा एहसास हूँ मैं
कभी लगता है नील गगन सी विशाल हूँ मैं
तो दुसरे पल लगता है जर्रे के आस पास हूँ मैं
कभी लगता है एक किताब हूँ मैं
तो कभी अनसुलझा सा राज हूँ मैं
कभी अपने आप मे ही एक सवाल हूँ मैं
कभी एक छोटा सा जवाब हूँ मैं
कभी अठखेलीयां करती लहर हूँ मैं
कभी सुनामी सा कहर हूँ मैं
कभी सुन्दर सा ख्वाब हूँ मैं.
और कभी खाली हाथ हूँ मैं ……..
उत्तराखंड के खूबसूरत से शहर देहरादून से हूँ | घर में लिखने पढ़ने का माहौल बचपन से ही देखती आई हूँ तो कब ये शौक मुझे भी लग गया पता नहीं बहुत छुटपन से लिखा मगर कभी उसको किसी एक जगह सम्भाल के रख नहीं पायी जब होश संभाला तो डायरी में अपनी भावनाओ को उकेरना शुरू कर दिया |
भावुक ह्रदय की हूँ और उतनी ही प्रेक्टिकल भी ये विरोधाभास ही है जिस वजह से मैंने अपनी कविता साझा की कई बार बहुत वाचाल हो जाती हूँ और कई बार शांत मेरे दोनों ही रूप से मेरे करीबी परेशां रहते है |
कविताओं के अलावा कहानी भी लिखती हूँ | सिखने की कोई उम्र नहीं होती अभी भी सिखने कि प्रकिया में ही हूँ |
मैं खुद को एक सफल इंसान से पहले एक अच्छे इंसान के रूप में पहचाना जाना चाहती हूँ |